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भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन

भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन

22.1 भारत संस्कृति का समृद्ध भण्डार है - जो हज़ारों वर्षों में विकसित हुआ है और यहाँ की कला, साहित्यिक कृतियों, प्रथाओं, परम्पराओं, भाषाई अभिव्यक्तियों, कलाकृतियों, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के स्थलों इत्यादि में परिलक्षित होता हुआ दिखता है। भारत में भ्रमण, भारतीय अतिथि सत्कार का अनुभव लेना, भारत के ख़ूबसूरत हस्तशिल्प एवं हाथ से बने कपड़ों को खरीदना, भारत के प्राचीन साहित्य को पढ़ना, योग एवं ध्यान का अभ्यास करना, भारतीय दर्शनशास्त्र से प्रेरित होना, भारत के अनुपम त्यौहारों में भाग लेना, भारत के वैविध्यपूर्ण संगीत एवं कला की सराहना करना और भारतीय फिल्मों को देखना आदि ऐसे कुछ आयाम हैं जिनके माध्यम से दुनिया भर के करोड़ों लोग प्रतिदिन इस सांस्कृतिक विरासत में सम्मिलित होते हैं, इसका आनन्द उठाते हैं और लाभ प्राप्त करते हैं। यही सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक संपदा है जो भारत के पर्यटन सलोगन के अनुसार भारत को वास्तव में “अतुल्य ! भारत” बनाती है। भारत की इस सांस्कृतिक संपदा का संरक्षण, संवर्धन एवं प्रसार, देश की उच्चतर प्राथमिकता होना चाहिए क्योंकि यह देश की पहचान के साथ-साथ इसकी अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

22.2 भारतीय कला एवं संस्कृति का संवर्धन न सिर्फ राष्ट्र बल्कि व्यक्तियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। बच्चों में अपनी पहचान और अपनेपन के भाव तथा अन्य संस्कृतियों और पहचानों की सराहना का भाव पैदा करने के लिए सांस्कृतिक जागरूकता और अभिव्यक्ति जैसी प्रमुख क्षमताओं को बच्चों में विकसित करना ज़रूरी है। बच्चों में अपने सांस्कृतिक इतिहास, कला, भाषा एवं परंपरा की भावना और ज्ञान के विकास द्वारा ही एक सकारात्मक सांस्कृतिक पहचान और आत्म-सम्मान बच्चों में निर्मित किया जा सकता है। अतः व्यक्तिगत एवं सामाजिक कल्याण के लिए सांस्कृतिक जागरूकता और अभिव्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है।

22.3 संस्कृति का प्रसार करने का सबसे प्रमुख माध्यम कला है। कला- सांस्कृतिक पहचान, जागरूकता को समृद्ध करने और समुदायों को उन्नत करने के अलावा व्यक्तियों में संज्ञानात्मक और सृजनात्मक क्षमताओं को बढ़ाने तथा व्यक्तिगत प्रसन्नता को बढ़ाने के लिए जानी जाती है। व्यक्तियों की प्रसन्नता/कल्याण, संज्ञानात्मक विकास और सांस्कृतिक पहचान वह महत्वपूर्ण कारण हैं जिसके लिए सभी प्रकार की भारतीय कलाएँ, प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल व शिक्षा से आरम्भ करते हुए शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों को प्रदान की जानी चाहिए।

22.4 भाषा, नि:संदेह, कला एवं संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। विभिन्न भाषाएँ, दुनिया को भिन्न तरीके से देखती हैं इसलिए,मूल रूप से किसी भाषा को बोलने वाला व्यक्ति अपने अनुभवों को कैसे समझता है या उसे किस प्रकार ग्रहण करता है यह उस भाषा की संरचना से तय होता है। विशेष रूप से, किसी संस्कृति के लोगों का दूसरों के साथ बात करना जैसे परिवार के सदस्यों, प्राधिकार प्राप्त व्यक्तियों, समकक्षों, अपरिचित आदि भाषा से प्रभावित होता है तथा बातचीत के तौर-तरीकों को भी प्रभावित करती है। लहज़ा, अनुभवों की समझ और एक ही भाषा के व्यक्तियों की बातचीत में अपनापन, यह सभी संस्कृति का प्रतिबिम्ब और दस्तावेज़ हैं। अतः संस्कृति हमारी भाषाओं में समाहित है। साहित्य , नाटक , संगीत, फ़िल्म आदि के रूप में कला की पूरी तरह सराहना करना बिना भाषा के संभव नहीं है। संस्कृति के संरक्षण , संवर्धन और प्रसार के लिए , हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा।

22.5 दुर्भाग्य से, भारतीय भाषाओं को समुचित ध्यान और देखभाल नहीं मिल पाई जिसके तहत देश ने विगत 50 वर्षों में ही 220 भाषाओं को खो दिया है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को 'लुप्तप्राय' घोषित किया है। विभिन्न भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं विशेषत: वे भाषाएँ जिनकी लिपि नहीं है। जब किसी समुदाय या जनजाति के,उस भाषा को बोलने वाले वरिष्ठ सदस्य की मृत्यु होती है तो अक्सर वह भाषा भी उनके साथ समाप्त हो जाती है; और प्रायः इन समृद्ध भाषाओं/संस्कृति की अभिव्यक्तियों को संरक्षित या उन्हें रिकॉर्ड करने के लिए कोई ठोस कार्रवाई या उपाय नहीं किए जाते हैं।

22.6 इसके अलावा, वे भारतीय भाषाएँ भी, जो आधिकारिक रूप से लुप्तप्राय की सूची में नहीं हैं- जैसे आठवीं अनुसूची की 22 भाषाएँ वे भी कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर रही है। भारतीय भाषाओं के शिक्षण और अधिगम को स्कूल और उच्चतर शिक्षा के प्रत्येक स्तर के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है। भाषाएँ प्रासंगिक और जीवंत बनी रहें इसके लिए इन भाषाओं में उच्चतर गुणवत्तापूर्ण अधिगम एवं प्रिंट सामग्री का सतत प्रवाह बने रहना चाहिए - जिसमें पाठ्य पुस्तकें, अभ्यास पुस्तकें, वीडिओ, नाटक, कविताएँ, उपन्यास, पत्रिकाएं आदि शामिल हैं। भाषाओं के शब्दकोशों और शब्द भण्डार को आधिकारिक रूप से लगातार अपडेट अद्यतन होते रहना चाहिए और उसका व्यापक प्रसार भी करना चाहिए ताकि समसामयिक मुद्दों और अवधारणाओं पर इन भाषाओं में चर्चा की जा सके। दुनियाभर के देशों द्वारा - अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, हिब्रू, कोरियाई, जापानी आदि भाषाओं में इस प्रकार की अधिगम सामग्री, प्रिंट सामग्री बनाने और दुनिया की अन्य भाषाओं की महत्त्वपूर्ण सामग्री का अनुवाद किया जाता है तथा शब्दभंडार को लगातार अद्यतन किया जाता है। परंतु, अपनी भाषाओं को जीवंत और प्रासंगिक बनाए
रखने में मदद के लिए ऐसी अधिगम सामग्री, प्रिंट सामग्री और शब्दकोश बनाने के मामले में भारत की गति काफ़ी धीमी रही है।

22.7 इसके अतिरिक्त, कई उपाय करने के पश्चात्‌ भी देश में भाषा सिखाने वाले कुशल शिक्षकों की अत्यधिक कमी रही है। भाषा शिक्षण में भी सुधार किया जाना चाहिए ताकि वह अधिक अनुभव-आधारित बने और उस भाषा में बातचीत और अन्तःक्रिया करने की क्षमता पर केन्द्रित हो न कि केवल भाषा के साहित्य, शब्दभंडार और व्याकरण पर। भाषाओं को अधिक व्यापक रूप में बातचीत और शिक्षण-अधिगम के लिए प्रयोग में लिया जाना चाहिए।

22.8 स्कूली बच्चों में भाषा, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए, कई पहलों की चर्चा अध्याय 4 में की जा चुकी है जिसमें - सभी स्कूली स्तरों पर संगीत, कला और हस्तकौशल पर बल देना; बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करने के लिए त्रिभाषा फार्मूला का जल्द क्रियान्वयन, साथ ही जब संभव हो मातृभाषा/स्थानीय भाषा में शिक्षण तथा अधिक अनुभव-आधारित भाषा शिक्षण ; उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों, लेखकों, हस्तकलाकारों एवं अन्य विशेषज्ञों को स्थानीय विशेषज्ञता के विभिन्न विषयों में विशिष्ट प्रशिक्षक के रूप में स्कूलों से जोड़ना; पाठ्यचर्या, मानविकी, विज्ञान, कला, हस्तकला और खेल में पारंपरिक भारतीय ज्ञान का समावेशन करना, जब भी ऐसा करना प्रासंगिक हो; पाठ्यचर्या में अधिक लचीलापन, विशेषकर माध्यमिक स्कूल में और उच्चतर शिक्षा में, ताकि विद्यार्थी एक आदर्श संतुलन कायम रखते हुए अपने लिए कोर्स का चुनाव कर सकें जिससे वे स्वयं के सृजनात्मक, कलात्मक, सांस्कृतिक एवं अकादमिक आयामों का विकास कर सकें आदि शामिल है।

22.9 उच्चतर शिक्षा एवं उससे आगे की शिक्षा के साथ कदम से कदम मिलाते हुए बाद में उल्लिखित प्रमुख पहलों को संभव बनाने के लिए आगे भी कई कदम उठाये जायेंगे। पहला, ऊपर उल्लिखित सभी कोर्स को विकसित करना एवं उनका शिक्षण, शिक्षकों एवं संकाय की उत्कृष्ट टीम का विकास करना होगा। भारतीय भाषाओं, तुलनात्मक साहित्य, सृजनात्मक लेखन, कला, संगीत, दर्शनशास्त्र आदि के सशक्त विभागों एवं कार्यक्रमों को देश भर में शुरू किया जाएगा और उन्हें विकसित किया जाएगा, साथ ही इन विषयों में (दोहरी डिग्री चार वर्षीय बी. एड. सहित) डिग्री कोर्स विकसित किए जाएंगे। ये विभाग एवं कार्यक्रम, विशेष रूप से उच्चतर योग्यता के भाषा शिक्षकों के एक बड़े कैडर को विकसित करने में मदद करेगा, साथ ही साथ कला, संगीत, दर्शनशास्त्र एवं लेखन के शिक्षकों को भी तैयार करेगा जिनकी देश भर में इस नीति को क्रियान्वित करने हेतु तुरंत आवश्यकता होगी। एनआरएफ इन क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान हेतु वित्त मुहैय्या कराया जाएगा। स्थानीय संगीत, कला, भाषाओं एवं हस्त-शिल्प को प्रोत्साहित करने के लिए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्र जहाँ अध्ययन कर रहे हों वे वहाँ की संस्कृति एवं स्थानीय ज्ञान को जान सकें, उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों एवं हस्त-शिल्प में कुशल व्यक्तियों को अतिथि शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। प्रत्येक उच्चतर शिक्षण संस्थान, प्रत्येक स्कूल और स्कूल कॉम्प्लेक्स यह प्रयास करेगा कि कलाकार वहीँ निवास करें जिससे कि छात्र कला, सृजनात्मकता तथा क्षेत्र/देश की समृद्धि को बेहतर रूप से जान सकें।

22.10 अधिक उच्चतर शिक्षण संस्थानों तथा उच्चतर शिक्षा के और अधिक कार्यक्रमों में मातृभाषा/स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग किया जाएगा और / या कार्यक्रमों को द्विभाषित रूप में चलाया जाएगा ताकि पहुँच और सकल नामांकन अनुपात दोनों में बढ़ोत्तरी हो सके, इसके साथ ही सभी भारतीय भाषाओं की मजबूती, उपयोग एवं जीवन्तता को प्रोत्साहन मिल सके; मातृभाषा/स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने और/ या कार्यक्रमों को द्विभाषित रूप में चलाने के लिए निजी प्रशिक्षण संस्थानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा एवं बढ़ावा दिया जाएगा। चार वर्षीय बीएड दोहरी डिग्री कार्यक्रम को दो भाषाओं में चलाने से भी मदद मिलेगी, जैसे कि देश भर के विद्यालयों में विज्ञान को दो भाषाओं में पढ़ाने वाले विज्ञान और गणित शिक्षकों के कैडर के प्रशिक्षण में।

22.11 उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत अनुवाद और विवेचना, कला और संग्रहालय प्रशासन, पुरातत्व, कलाकृति संरक्षण, ग्राफ़िक डिजाईन एवं वेब डिजाईन के उच्चतर गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम एवं डिग्रियों का सृजन भी किया जाएगा। अपनी कला एवं संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता वाली सामग्री विकसित करना, कलाकृतियों का संरक्षण करना, संग्रहालयों और विरासत या पर्यटन स्थलों को चलाने के लिए उच्चतर योग्यता प्राप्त व्यक्तियों का विकास करना जिससे पर्यटन उद्योग को भी काफी मजबूती मिल सके।

22.12 यह नीति इस बात को स्वीकारती है कि शिक्षार्थियों को भारत की समृद्ध विविधता का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होना चाहिए । इसका अर्थ छात्रों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में भ्रमण करने जैसी सरल गतिविधियों को शामिल करना होगा जिससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों की विविधता, संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान की समझ और सराहना होगी । 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के तहत इस दिशा में देश के 100 पर्यटन स्थलों की पहचान की जाएगी, जहाँ शिक्षण संस्थान छात्रों को इन क्षेत्रों के बरे में ज्ञानवर्धन करने के लिए स्थलों और उनके इतिहास, वैज्ञानिक योगदान, परंपराओं, स्वदेशी साहित्य और ज्ञान आदि का अध्ययन करने के लिए भेजेंगे।

22.13 उच्चतर शिक्षा में कला, भाषा और मानविकी के क्षेत्रों में ऐसे कार्यक्रम बनाने से ऐसे रोजगार के ऐसे गुणवत्तापूर्ण अवसर भी पैदा होंगे जो इन योग्यताओं का प्रभावकारी उपयोग कर पायेंगे। अभी भी हजारों की संख्या में अकादमियां, संग्रहालय, कला वीथिकाएँ और धरोहर स्थल हैं जिनको सुचारू रूप से संचालित करने के लिए योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता है। जैसे ही योग्य व्यक्तियों से रिक्त पदों को भरा जाएगा, एवं अधिक कलाकृतियों को जुटाया जाएगा और संरक्षित किया जाएगा, इसके अतिरिक्त संग्रहालय (जिनमें आभासी (वर्चुअल) संग्रहालय / ई-संग्रहालयों सहित), वीथिकाएँ और धरोहर स्थल हमारी विरासत और भारत के पर्यटन उद्योग को संरक्षित रख पाएँगी।

22.14 भारत शीघ्र ही अनुवाद एवं विवेचना से संबंधित अपने प्रयासों का विस्तार करेगा, जिससे सर्वसाधारण को विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओंमें उच्चतर गुणवत्ता वाला अधिगम सामग्री और अन्य महत्त्वपूर्ण लिखित एवं मौखिक सामग्री उपलब्ध हो सके। इसके लिए एक इंस्टिट्यूट ऑफ़ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई) की स्थापना की जायेगी। इस प्रकार का संस्थान देश के लिए महत्वपूर्ण सेवा प्रदान करेगा साथ ही अनेक बहु-भाषी भाषा और विषय विशेषज्ञ तथा अनुवाद एवं व्याख्या के विशेषज्ञों को नियुक्त करेगा जिससे सभी भारतीय भाषाओं को प्रसारित और प्रचारित करने में मदद मिलेगी। आईआईटीआई को अपने अनुवाद और व्याख्या करने के प्रयासों को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग करेगा। आईआईटीआई समय के साथ स्वाभाविक रूप से उन्नति करेंगे और जैसे जैसे अर्हता प्राप्त उम्मीदवारों की मांग बढ़ेगी, संस्थान को उच्चतर शिक्षण संस्थानों सहित, देश भर के विभिन्न स्थानों में खोला जा सकेगा ताकि अनुसंधान विभाग के साथ सहभागिता सुगम हो सके।

22.15 संस्कृत भाषा के वृहद्‌ एवं महत्वपूर्ण योगदान तथा विभिन्न विधाओं एवं विषयों के साहित्य, सांस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक प्रकृति के चलते संस्कृत को केवल संस्कृत पाठशालाओं एवं विश्वविद्यालयों तक सीमित न रखते हुए इसे मुख्य धारा में लाया जाएगा- स्कूलों में त्रि-भाषा फार्मूला के तहत एक विकल्प के रूप में, साथ ही साथ उच्चतर शिक्षा में भी। इसे पृथक रूप से नहीं पढाया जाएगा बल्कि रुचिपूर्ण एवं नवाचारी तरीकों से एवं अन्य समकालीन एवं प्रासंगिक विषयों जैसे गणित, खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नाटक विधा, योग आदि से जोड़ा जाएगा। अतः इस नीति के बाकी हिस्से से संगतता रखते हुए, संस्कृत विश्वविद्यालय भी उच्चतर शिक्षा के बड़े बहुविषयी संस्थान बनने की दिशा में अग्रसर होंगे; वे संस्कृत विभाग जो संस्कृत एवं संस्कृत ज्ञान व्यवस्था के शिक्षण एवं उत्कृष्ट अंतरविषयी अनुसंधान का संचालन करते हैं उन्हें सम्पूर्ण नवीन बहु-विषयी उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के भीतर स्थापित / मजबूत किया जाएगा। यदि छात्र चाहे तो संस्कृत उच्चतर शिक्षा का स्वाभाविक हिस्सा बन जाएगा। शिक्षा एवं संस्कृत विषयों में चार वर्षीय बहु-विषयक बी.एड. डिग्री के द्वारा मिशन मोड में पूरे देश के संस्कृत शिक्षकों को बड़ी संख्या में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जायेगी।

22.16 भारत इसी तरह सभी शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का अध्ययन करने वाले अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों का विस्तार करेगा, और उन हजारों पांडुलिपियों को इकट्ठा करने, संरक्षित करने, अनुवाद करने और उनका अध्ययन करने के मजबूत प्रयास करेगा, जिन पर अभी तक ध्यान नहीं गया है। इसी प्रकार से सभी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों, जिनमें शास्त्रीय भाषाओं एवं साहित्य पढाया जा रहा है, उनका विस्तार किया जाएगा। अभी तक उपेक्षित रहे लाखों अभिलेखों के संग्रह, संरक्षण, अनुवाद एवं अध्ययन के दृढ  प्रयास किये जायेंगे। देश भर के संस्कृत एवं सभी भारतीय भाषाओं के संस्थानों एवं विभागों को उल्लेखनीय रूप से मजबूत किया जाएगा, छात्रों के नए बैच को बड़ी संख्या में अभिलेखों एवं अन्य विषयों के साथ उनके अंतर्सबंधों के अध्ययन का समुचित प्रशिक्षण दिया जाएगा। शास्त्रीय भाषा के संस्थान अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए विश्वविद्यालयों के साथ सम्बद्ध होने या उनमें विलय का प्रयास करेंगे ताकि एक सुदृढ़ एवं गहन बहुविषयी कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर संकाय काम कर सके एवं छात्र प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। समान उद्देश्य प्राप्त करने के लिए, भाषाओं को समर्पित विश्वविद्यालय भी बहुविषयी बनेंगे; जहाँ प्रासंगिक होगा वे शिक्षा एवं उस भाषा में बी.एड. दोहरी डिग्री प्रदान करेगी ताकि उस भाषा के उत्कृष्ट भाषा शिक्षक तैयार हो सकें। इसके अलावा, यह भी प्रस्तावित है कि भाषाओं के लिए एक नया संस्थान स्थापित किया जाएगा। विश्वविद्यालय के परिसर में एक पाली, फारसी, एवं प्राकृत भाषा के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किया जाएगा। जिन संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में भारतीय कला, कला इतिहास एवं भारत विद्या का अध्ययन किया जा रहा है वहाँ भी इसी प्रकार के कदम उठाये जायेंगे। इन सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट अनुसंधानों को एनआरएफ द्वारा सहयोग प्रदान किया जाएगा।

22.17 शास्त्रीय, आदिवासी और लुप्तप्राय भाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयास नए जोश के साथ किए जाएंगे। प्रौद्योगिकी एवं क्राउडसोर्सिंग, लोगों की व्यापक भागीदारी के साथ, इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

22.18 भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित प्रत्येक भाषा के लिए अकादमी स्थापित की जायेगी जिनमें हर भाषा से श्रेष्ठ विद्वान एवं मूल रूप से वह भाषा बोलने वाले लोग शामिल रहेंगे ताकि नवीन अवधारणाओं का सरल किन्तु सटीक शब्द भण्डार तय किया जा सके, तथा नियमित रूप से नवीनतम शब्दकोष जारी किया जा सके (विश्व में कई भाषाओं अन्य कई भाषाओं के सफल प्रयासों के सहश)। इन शब्दकोशों के निर्माण के लिए ये अकादमियां एक दुसरे से परामर्श लेंगी, कुछ मामलों में आम जनता के सर्वश्रेष्ठ सुझावों को भी लेंगी। जब भी संभव हो, साझे शब्दों को अंगीकृत करने का प्रयास भी किया जाएगा। ये शब्दकोष व्यापक रूप से प्रसारित किये जायेंगे ताकि शिक्षा, पत्रकारिता, लेखन, बातचीत आदि में इस्तेमाल किया जा सके एवं किताब के रूप में तथा ऑनलाइन उपलब्ध हों। अनुसूची 8 की भाषाओं के लिए इन अकादिमियों को केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के साथ परामर्श करके अथवा उनके साथ मिलकर स्थापित किया जाएगा। इसी प्रकार व्यापक पैमाने पर बोली जाने वाली अन्य भारतीय भाषाओं की अकादमी केंद्र अथवा/और राज्य सरकारों द्वारा स्थापित की जायेंगी।

22.19 सभी भारतीय भाषाओं और उनसे संबंधित समृद्ध स्थानीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण हेतु सभी भारतीय भाषाओं एवं और उनसे संबंधित स्थानीय कला एवं संस्कृति का, वेब आधारित प्लेटफार्म/पोर्टल/विकीपीडिया के माध्यम से दस्तावेजीकरण किया जाएगा। प्लेटफार्म पर विडियो, शब्दकोष, रिकॉर्डिंग एवं अन्य सामग्री होगी जैसे लोगों द्वारा भाषा बोलना (विशेषकर बुजुर्गों द्वारा), कहानियां सुनाना, कविता पाठ करना, नाटक खेलना, लोक गायन एवं नृत्य करना आदि। देश भर के लोगों को इन प्रयासों में योगदान देने के लिए आमंत्रित किया जाएगा जिससे वो इन प्लेटफार्म/पोर्टल/विकीपीडिया पर प्रासंगिक सामग्री जोड़ सकेंगे। विश्वविद्यालय एवं उनकी शोध टीम एक दूसरे के साथ तथा देश भर के समुदायों के साथ काम करेंगी ताकि इन प्लेटफार्म को और समृद्ध किया जा सके। संरक्षण के इन प्रयासों तथा इनसे जुड़े अनुसंधान परियोजनाओं, उदाहरण के लिए इतिहास, पुरातत्व, भाषा विज्ञान आदि को एनआरएफ द्वारा वित्तीय सहायता दी जायेगी।

22.20 स्थानीय मास्टर्स तथा उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत भारतीय भाषाओं, कला एवं संस्कृति के अध्ययन के लिए सभी आयु के लोगों के लिए छात्रवृत्ति की स्थापना की जायेगी। भारतीय भाषाओं का संवर्धन एवं प्रसार तभी संभव है जब उन्हें नियमित तौर पर प्रयोग किया जाए तथा शिक्षण-अधिगम के लिए प्रयोग किया जाए। भारतीय भाषाओं में, विभिन्न श्रेणियों में उत्कृष्ट कविताओं एवं गद्य के लिए पुरस्कार की स्थापना जैसे प्रोत्साहन के कदम उठाये जायेंगे ताकि सभी भारतीय भाषाओँ में जीवंत कवितायें, उपन्यास, पाठ्य पुस्तकें, कथेतर साहित्य का निर्माण एवं पत्रकारिता जैसे अन्य कार्य सुनिश्चित किये जा सकें। भारतीय भाषाओँ में प्रवीणता को रोज़गार अर्हता के मानदंडो के एक हिस्से के तौर पर शामिल किया जाएगा।

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